अमोघ मंत्रः  सदा स्वस्थ और दीर्घायु बने रहोगे

जड-चेतन सभी को नीरोगी होना जरुरी है। स्वस्थ मन और नीरोगी शरीर वाला मनुष्य ही मानव-जीवन के उद्देश्य को सफलतापूर्वक प्राप्त कर सकता है। मनुष्य निरोग रहे, इसके लिए आयुर्वेदार्चायों ने एक अमोघ मंत्र बताया है। आइए जानते हैं-

नरो हिताहारविहारसेवी जो व्यक्ति सदैव हितकारी आहार और विहार का सेवन करने वाला,

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समीक्ष्यकारी विषयेष्वसक्तः विचारपूर्वक (सोच-समझकर) काम करने वाला, काम-क्रोधादि विषयों में आसक्त न रहने रहने वाला,

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दाता समः सत्यपर जो दानशील, सभी प्राणियों पर समदृष्टि रखने वाला, सत्य बोलने में तत्पर रहने वाला,

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क्षमावानाप्तोपसेवी च भवत्यरोग: (क्षमावान्) सहनशील और आत्पपुरुषों (वृद्धजन, सज्जन एवं विद्धानों) की सेवा करने वाला है, वह मनुष्य रोगरहित होता है।

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मतिवर्चः कर्म सुखानुबन्धं सुख देने वाली मति, सुखकारक वचन और कर्म,

सत्त्वं विधेयं विशदा च बुद्धि अपने अधीन मन तथा शुद्ध पापरहित बुद्धि जिसके पास है,

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ज्ञानं तपस्तत्परता च योगे जो ज्ञान प्राप्त करने और योग सिद्ध करने में तत्पर रहता है,

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स्यास्ति तं नानुपतन्ति रोगाः उसे शारीरिक और मानसिक कोई भी रोग नहीं होते अर्थात् वह सदा स्वस्थ और दीर्घायु बना रहता है।

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