ऋणात्मक विचार
(negative thoughts)
जैसे- क्रोध, घृणा,ईर्ष्या, द्वेष, निन्दा, स्वार्थ, चिन्ता, झूठ, भय, परद्रोह आदि से प्रभावित होकर ये ग्रन्थियां विषमय रस निकालकर शरीर को भयंकर रोगों से ग्रसित करती हैं।
डॉ. मोसाहारू तानागुची, पी.एच.डी. के अनुसार
यदि आपका मन आसुरी प्रवृत्तियों में सुखी होता है तो निश्चय ही वह विकृत एवं असामान्य है। क्रोध, घृणा, भय, ईर्ष्या, दूसरों को नीचा दिखाने की मानसिकता- मन की यह सब असामान्य स्थितियां हैं। ये बीमारियों को जन्म देती है।