जड-चेतन सभी को नीरोगी होना जरुरी है। स्वस्थ मन और नीरोगी शरीर वाला मनुष्य ही मानव-जीवन के उद्देश्य को सफलतापूर्वक प्राप्त कर सकता है। मनुष्य निरोग रहे, इसके लिए आयुर्वेदार्चायों ने एक अमोघ मंत्र बताया है। आइए जानते हैं-
नरो हिताहारविहारसेवी
जो व्यक्ति सदैव हितकारी आहार और विहार का सेवन करने वाला,
1
समीक्ष्यकारी विषयेष्वसक्तः
विचारपूर्वक (सोच-समझकर) काम करने वाला, काम-क्रोधादि विषयों में आसक्त न रहने रहने वाला,
2
दाता समः सत्यपरजो दानशील, सभी प्राणियों पर समदृष्टि रखने वाला, सत्य बोलने में तत्पर रहने वाला,
3
क्षमावानाप्तोपसेवी च भवत्यरोग:
(क्षमावान्) सहनशील और आत्पपुरुषों (वृद्धजन, सज्जन एवं विद्धानों) की सेवा करने वाला है, वह मनुष्य रोगरहित होता है।
4
मतिवर्चः कर्म सुखानुबन्धं
सुख देने वाली मति, सुखकारक वचन और कर्म,
सत्त्वं विधेयं विशदा च बुद्धि
अपने अधीन मन तथा शुद्ध पापरहित बुद्धि जिसके पास है,
5
6
ज्ञानं तपस्तत्परता च योगे
जो ज्ञान प्राप्त करने और योग सिद्ध करने में तत्पर रहता है,