सम्पूर्ण शरीर से मल निष्कासन करने वाली मुद्रा

योग साधना के लिए साधक का शरीर निर्मल होना परम आवश्यक है। अपान मुद्रा के अभ्यास से शरीर के सम्पूर्ण मल, चाहे वे शरीर के किसी भी भाग से निःसर्ग होते हों, सरलतापूर्वक शरीर से बाहर जाते हैं।  योग विज्ञान की इस महत्वपूर्ण मुद्रा के अभ्यास से साधक को उत्कृष्ट प्रकार की शारीरिक निर्मलता संभव हो जाती है।

योग की उच्च स्थिति में पहुंचने के लिए प्राण-अपान का संयोग और समस्थिति होना आवश्यक है। इस मुद्रा के निरन्तर अभ्यास से साधक साधना में तीव्रता से अग्रसर होता है।

अपान मुद्रा केवल साधकों के लिए ही नहीं, साधारण सांसारिक व्यक्तियों के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत उपयोगी है। यदि किसी व्यक्ति को मूत्र बन्द लग गया हो, किसी औषधि आदि के द्वारा भी रोगी को मूत्र नहीं आ रहा हो तो अपान मुद्रा का अभ्यास करने से लाभ हो सकता है।

कैसे करेंः मध्यमा तथा अनामिका अंगुलियों को अंगूठे के अग्रभाग से लगा दें। बाकी अंगुलियों को सीधा रखें। अभ्यासावधिः 45 मिनट।

अपानमुद्रा से लाभ: अपानमुद्रा के निरन्तर अभ्यास से शरीर और नाडी की शुद्धि होती है। कब्ज दूर होता है। मल-दोष नष्ट होते हैं। बवासीर दूर होता है। वायु-विकार, मधुमेह, मूत्रावरोध, गुर्दों के दोष, दांतों के दोष दूर होते हैं। यह पेट के लिए उपयोगी है। ह्रदय रोगों में लाभ होता है तथा यह पसीना लाती है। सावधानीः  इस मुद्रा से मूत्र अधिक होगा।