सूर्य (नारायण)  ध्यान

ध्येयः सदा सवितृ-मण्डल-मध्यवर्ती। नारायणः सरसिजाआसन सन्निविष्टः। केयूरवान् मकर-कुण्डलवान किरीट। हारी हिरण्यमय वपुर्धृत शंख-चक्र।।

सौरमण्डल के मध्य में, कमल के आसन पर विराजमान सूर्य नारायण जो बाजूबंद, मकर की आकृति के कुण्डल, मुकुट, शंख, चक्र धारण किये हुए तथा स्वर्ण आभायुक्त शरीर वाले हैं, उनका मैं सदैव ध्यान करता हूँ।

1.नमस्कारासन ॐ मित्राय नमः हे सम्पूर्ण विश्व के मैत्राीभाव बनाए रखने वाले! आपको नमन है।

2.हस्तोत्तानासन ॐ रवये नमः हे गति व शब्द करने वाले! आपको नमन है।

3.पादहस्तासन ॐ सूर्याय नम: हे संसार को जीवन देने वाले तेज! आपको नमस्कार।

4.वाम अश्व संचालासन ओम् भानवे नमः हे प्रदीप्त होने वाले प्रकाश पुंज! आपको नमन है।

5.पर्वतासन ॐ खगाय नमः हे आकाश में भ्रमण करने वाले सर्वव्यापी! आपको नमन है।

6.सांष्टांग नमस्कार ॐ पुष्णाय नमः हे संसार के पोषण करने वाले! आपको नमन है।

7.भुजंगासन ॐ हिरण्यगर्भाय नमः हे स्वर्णिम विश्वात्मा! आपको नमन है।

8.पर्वतासन ॐ मरिचये नमः हे रश्मियों के अधिपति! आपको नमन है।

9.दक्षिण-पाद अश्वसंचालनासन ॐ आदित्याय नमः हे जीवनरक्षक अदित पुत्र! आपको नमन है।

10.पादहस्तासन ॐ सवित्रे नमः हे विश्व को उत्पन्न करने वाले! आपको नमन है।

11.हस्तोत्तानासन ॐ अकार्य नमः हे विश्व को उत्पन्न करने वाले, आपको नमन है।

12.प्रणामासन/नमस्कारासन ॐ भास्कराय नमः हे प्रकाशित करने वाले, आत्मज्ञान के प्ररेक, आपको नमन है।

लाभ आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने-दिने। आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस् तेषां च जायते।।

सावधानियां 8 वर्ष से ज्यादा आयु वाले सभी व्यक्ति यह आसन कर सकते हैं। मेरुदण्ड की समस्या, उच्च रक्तचाप, ह्रदय दोष व हर्निया आदि रोगग्रस्त साधक किसी गुरु के निर्देशानुसार यह अभ्यास करे।

नोटः यह लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है। योग का कोई भी अभ्यास योग-गुरु के निर्देशानुसार लाभप्रद रहता है।